बनारस
भारत अनेक संस्कृतियों, क्षेत्रों, जातियों और धर्मों का देश है। मानव जाति सभ्यता की भिन्न भिन्न अवस्थाओं से गुज़री है। भारत में प्रायः वो सभी मौजूद हैं। और बनारस में भारत का लघु रूप प्रतिबिम्बित होता है।
पौराणिक अनुश्रुतियों तथा लोक विश्वासों से बनारस महिमा मंडित है।काशी शिव का स्थायी निवास है। ऐसी मान्यता है कि अन्य सभी तीर्थों के देवता भी यहाँ निवास करते हैं। रामायण और महाभारत जैसे हिन्दू धर्म के अति प्राचीन ग्रंथों में काशी का उल्लेख है। महात्म्य की दृष्टि से यह यह धर्म क्षेत्र काशी को अधिक उत्कृष्ट माना गया है।
प्राचीन काल में काशी एक राज्य था और वाराणसी इसकी राजधानी। बनारस बौद्ध और जैन धर्म का भी तीर्थ स्थल है। हिन्दू धर्म का तो सर्वाधिक मान्य और शीर्षस्थ तीर्थ है काशी। धार्मिक और वैचारिक दृष्टि से बनारस सम्पूर्ण भारत का प्रतिनिधि है। यह सांस्कृतिक तथा धर्मिक विविधता का नगर होने के साथ साथ प्राचीन तथा अर्वाचीन विद्या का केंद्र है। भारत के विभिन्न अंचलों से आकर हज़ारों की संख्या में पंडित, वृद्ध, सन्यासी और विधवाएं मुक्ति की कामना से यहाँ आजीवन रहते हैं। संस्कृत तथा हिन्दू धर्म की परंपरागत विद्या के यहाँ छोटे बड़े कई सौ विद्यालय हैं। इनमें सम्पूर्णानन्द संस्कृत विश्वविद्यालय , काशी हिन्दू विश्वविद्यालय और महात्मा गांधी काशी विद्यापीठ प्रमुख हैं। अनेकता में एकता स्थापन की प्रक्रिया का अध्ययन करने के लिए यह सर्वोत्तम स्थान है। आध्यात्म, धर्म और संसार घनीभूत रूप से यहीं विद्यमान हैं।
काशी को मोक्षदायिनी कहते हैं। इस मान्यता के पीछे एक कारण वाराणसी में माँ गंगा का उत्तरवाहिनी होना भी है। सामन्यतः उत्तर से दक्षिण की ओर प्रवाहित होने वाली गंगा, जो स्वयंभू शिव की जटा से निकली हुयी मानी जाती है, वाराणसी में आकर उत्तरवाहिनी हो जाती हैं । वापस प्रभु की दिशा में बहने वाली इस नदी में मृत्योपरांत राख प्रवाहित करने पर पुनः प्रभु एवं मोक्ष की प्राप्ति होती है। इस महान नगरी का स्वरुप ऐसे ही अनेक विश्वासों और मिथकों से जुड़ा हुआ है। यहाँ भारत के प्रायः प्रत्येक अंचल के लोग अपने अपने समुदाय में अपनी आंचलिक संस्कृतियों तथा भाषाओँ के साथ निवास करते हैं।
अपनी कलाकृतियों और रेशम के वस्त्रों के लिए यह नगर प्राचीन समय से प्रसिद्ध है। काष्ठ शिल्प, श्रृंगार प्रसाधनों और सज्जात्मक सामानों के लिए भी इसकी देश विदेश में ख्याति है। बनारस मुख्यतः अपनी बनारसी साड़ी के लिए विश्व भर में प्रसिद्ध है। बनारसी साड़ी दो सम्प्रदायों के सौहार्द का प्रतीक भी है क्योंकि इस साड़ी तैयार करने के अलग अलग चरणों में हिन्दू व मुस्लिम दोनों सहभागी होते हैं। वाराणसी के निवासी शादी विवाह के शुभ मौके पर बनारसी साड़ी का प्रयोग अनिवार्य समझते हैं ताकि इस सौहार्द के प्रतीक से घर का माहौल भी सौहार्दपूर्ण हो जाये।
अति प्राचीन काल से बनारस के हस्तशिल्प और साड़ी का व्यापार पूरे विश्व में होता रहा है। काशी के इसी प्राचीनतम व्यापार को आधुनिकतम व्यापार प्रक्रिया में सम्मिलित कर लेने का यह लघु प्रयास है।
- कुमुद मिश्रा